
दिल की बात होली के साथ
होली का नाम सुनते ही याद आता है वो रंग.बिरंगा माहौल, मुंह में पानी लाने वाली मीठी.मीठी गुंजिया की खुशबु और बुरा न मानो… होली है, का शोर फिल्मों और किस्से.कहानियों में भी बताया जाता है कि होली के रंगों के साथ ही सारी दुश्मनी भुला दी जाती है। ऐसे में कह सकते हैं कि पर सिर्फ मजाक, मस्ती ही नहीं बल्कि लड़ाई.झगड़ा ख़त्म होता है। इस होली को लेकर हमने बात कि दिल्ली और आसपास के कुछ लोगों से जिन्होंने अपने अपने तरीके से होली का मतलब बताया।
Ankita Sule Ashu Geetika Kaur
दिल्ली की मधु अग्रवाल का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से होली के केमिकल मिश्रित रंगों से बचने के लिए उनके जैसे बहुत सारे लोग कहीं एकांत में जाना पसन्द करते हैं। आजकल त्यौहार दिखावा, सोशल स्टेटस के प्रतीक बन गए हैं। प्रेम के स्थान पर स्वार्थ हावी हो गया है। त्योहार फॉरमैलिटी वाले हो गए। वर्तमान पीढ़ी दीवाली तो घर में मना लेगी लेकिन होली पर बाहर निकलना पसन्द नहीं करती। कारण वही हैं मिलावटी रंग जो सेहत को खराब करते हैं। शिक्षित एवं सुसंस्कृत वर्ग गुलाल से होली खेलना पसन्द करता है। बच्चे त्योहार की गरिमा समझें यह जरूरी है। जिस सोसाइटी, कॉलोनी, गली.मोहल्ले में हों उन सबके साथ एकत्रित होकर बिना किसी भेदभाव के होली मिलन मनाएं तो बच्चे संस्कार स्वयमेव ग्रहण करेंगे। शुरुआत हम करें। प्रोत्साहन बच्चों को दें। हमसे अच्छा आयोजन वे खुद करने लगेंगे। उनको समझ आएगी घूमने कभी भी जा सकते हैं, त्यौहार तो मिलकर मनाने में ही आनंद आता है।
Madhu Aggarwa Rakhi Jain
रोहिणी की राखी जैन बताती हैं कि जब भी वे अपने बच्चों को पानी की बंदूक और गुब्बारों से खेलते देखती हैं तो उन्हें भी अपना बचपन याद आ जाता है। एक बार उनके दादा.दादी की शादी की 50वीं सालगिरह थी तो सभी ने सोचा की होली के अवसर पर उनके लिए सरप्राइज जैसा कुछ किया जाए। सुबह 6 बजे दरवाजे की बेल बजी दादी जी ने जैसे ही दरवाजा खोला तो सभी लोगों ने तेज़ आवाज़ में उन्हें बधाई दी। उस होली पर बुजुर्गों का ऐसा सम्मान करना उन्हें आज ही अच्छे से याद है।
नोएडा की आशु ने अपने कॉलेज के दिनों की यादों को ताज़ा करते हुए बताया कि एक बार होली पर पूरी मस्ती करने के बाद उन्होंने नहाना.धोना किया और नए कपड़े पहनकर किसी रिश्तेदार के यहां निकल पड़ी। रास्ते में कुछ सहेलियों ने पकड़ लिया और मुझे बातों में लगाकर रंग से भरे पूल में डाल दिया। अपने कपड़े ख़राब होने उनका रोना निकल गया और सब हंसने लगे। लेकिन थोड़ी ही देर चालाकी दिखाते हुए उन्होंने उन सबको एक साथ पूल में गिरा दिया और अबकी बार वे खूब हंसी। होली पर ऐसी हंसी ठिठोली उन्हें कभी नहीं भूलती।
नोएडा की ही गीतिका कौर का मानना हैं कि होली का त्यौहार अपने यादों को ताज़ा करने के लिए काफी अच्छा है। सिर्फ खाने पीने के लिए नहीं बल्कि दूसरों को खुशियां देने की कोशिश होती है। सिर्फ हुडदंग मचाना होली नहीं है बल्कि एक दूसरे का सम्मान भी जरुरी है। परिवार के साथ होली मनाना ज्यादा अच्छा होता है।
मुंबई की अंकिता बताती हैं कि उसके होम टाउन सतारा में वे कुछ अलग तरह से होली खेलते हैं। सभी बच्चे मिलकर पानी के गुब्बारें बनाते और एक दूसरे पर फेंकते थे। ऐसे होली का पूरे साल इंतज़ार करते थे। हालांकि कभी.कभी बड़ों से डांट भी पड़ती थी लेकिन हम बच्चे उस टाइम कहां सुनते थे। लेकिन अब समझ में आता कि गुब्बारों से बचना चाहिए।
-तरूण जैन