
खूबसूरती का मापदंड
वर्ष 1977 में एक फिल्म आई थी शंकर हुसैन । फिल्म के नायक थे प्रदीप कुमार और नायिका थी मधु चंदा।
फिल्म के संगीतकार थे खय्याम और संवाद एवं गीतों के बोल लिखे थे कमाल अमरोही ने। इस फिल्म का एक गाना ‘कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की , बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी ‘,अत्यंत मधुर था।

इस गाने के लिरिक्स में ‘ खूबसूरत ‘ और ‘सांवली ‘ के बीच में ‘मगर’ शब्द का उपयोग किया गया है जिसका मतलब है कि सांवली लड़की सामान्यतः खूबसूरत नहीं हो सकती या वो खूबसूरत है लेकिन उसका सांवली होना नकारात्मक है। यह पंक्ति कमाल अमरोही की ही नहीं, हमारे संपूर्ण भारतीय समाज की मानसिकता को दर्शाती है । मेरी दृष्टि में व्यक्ति के शरीर के रंग का उसकी खूबसूरती से कोई संबंध नहीं है। खूबसूरती का संबंध किसी भी व्यक्ति के आचार विचार से है।
अब धीरे-धीरे हम लोग सिविलाइज्ड होते जा रहे हैं तो हमें सांवलेपन के प्रति दुराग्रह छोड़ देना चाहिए। यह गाना एक तरह से संबंधों और मोहब्बत के म्यूजियम में देखी जा सकने वाली एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म है ,जिसमें नई पीढ़ी देख सकती है कि जब मोबाइल, व्हाट्सएप, फेसबुक और समाज में खुलापन नहीं था तब मोहब्बत कैसे होती थी। शायद तब दो दिल किन्हीं अदृश्य चुंबकीय तरंगों से जुड़कर संवाद किया करते होंगे । यह मोहब्बत पवित्र और शुद्ध होती होगी। आजकल क्या है, आप सभी बेहतर जानते हैं ।
कई बार हम किसी गाने को सुनते समय उसके संगीत और गायक की प्रस्तुति में इतना डूब जाते हैं कि लिरिक्स के कई शब्द इग्नोर हो जाते हैं ।तो चलिए शंकर हुसैन फिल्म के ऐतिहासिक गाने के बोल आज यहां पढ़िए, फिर यूट्यूब पर जाकर इस गाने को सुनिए।
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर सरहने से तकिये गिराती तो होगी वही ख़्वाब दिन के मुंडेरों पे आके उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे कई साज़ सीने की खामोशियों में मेरी याद में झनझनाते तो होंगे वो बेसाख्ता धीमे-धीमे सुरों में मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी चलो खत लिखें जी में आता तो होगा मगर उंगलियां कँप-कँपाती तो होंगी कलम हाथ से छूट जाता तो होगा उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर वो दांतों में उँगली दबाती तो होगी ज़ुबाँ से अगर उफ़ निकलती तो होगी बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे दुपट्टा ज़मीं पर लटकता तो होगा कभी सुबह को शाम कहती तो होगी कभी रात को दिन बताती तो होगी।
- वेद माथुर
पढें:
व्यंग्य उपन्यास
बैंक ऑफ़ पोलमपुर हिंदी और अंग्रेजी में हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध
www.vedmathur.com