
आखिर टीआरपी है क्या बला?
इस हमाम में सब नंगे
आजकल टेलीविजन चैनलों में अपनी टीआरपी या दर्शकों की संख्या ज्यादा से ज्यादा बताने के लिए होड़ मची हुई है ।
इसी होड़ के चलते वे घटिया सामग्री परोसते हैं ।
उदाहरण के लिए ‘आज तक’ जैसे प्रमुख चैनल पर स्वर्गीय रामविलास पासवान की मृत्यु और उनकी जीवनी पर कोई लंबा कार्यक्रम बताने के बजाय तीन दिन पुरानी हाथरस के कथित बलात्कार की स्टोरी बार-बार रिपीट की जा रही हैं।

TRP आखिर है क्या बला?
टीआरपी का मतलब है टेलिविजन रेटिंग पॉइंट। इसके जरिए चलता है कि किसी टीवी चैनल या किसी शो को कितने लोगों ने कितने समय तक देखा। इससे यह पता चलता है कि कौन सा चैनल या कौन सा शो कितना लोकप्रिय है, उसे लोग कितना पसंद करते हैं। जिसकी जितनी ज्यादा टीआरपी, उसकी उतनी ज्यादा लोकप्रियता। अभी BARC इंडिया (ब्रॉडकास्ट आडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया) टीआरपी को मापती है।
TRP कैसे मापी जाती है?
अब समझते हैं कि आखिर टीआरपी मापी कैसे जाती है। सबसे पहले तो यह साफ कर देना जरूरी है कि टीआरपी कोई वास्तविक नहीं बल्कि आनुमानित आंकड़ा होता है। देश में करोड़ों घरों में टीवी चलते हैं, उन सभी पर किसी खास समय में क्या देखा जा रहा है, इसे मापना व्यावहारिक नहीं है। इसलिए सैंपलिंग का सहारा लिया जाता है। टीआरपी मापने वाली एजेंसी देश के अलग-अलग हिस्सों, आयु वर्ग, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिध्तव करने वाले सैंपलों को चुनते हैं। कुछ हजार घरों में एक खास उपकरण जिसे पीपल्स मीटर कहा जाता है, उन्हें फिट किया जाता है। पीपल्स मीटर के जरिए यह पता चलता है कि उस टीवी सेट पर कौन सा चैनल, प्रोग्राम या शो कितनी बार और कितने देर तक देखा जा रहा है। पीपल्स मीटर से जो जानकारी मिलती है, एजेंसी उसका विश्लेषण कर टीआरपी तय करती है। इन्हीं सैंपलों के जरिए सभी दर्शकों की पसंद का अनुमान लगाया जाता है।
टीवी चैनलों की कमाई का मुख्य स्रोत विज्ञापनों से आने वाला पैसा ही है। जिस चैनल की जितनी ज्यादा लोकप्रियता यानी टीआरपी होती है, विज्ञापनदाता उसी पर सबसे ज्यादा दांव खेलते हैं। ज्यादा टीआरपी है तो चैनल विज्ञापनों को दिखाने की ज्यादा कीमत लेगा। कम टीआरपी होगी तब या तो विज्ञापनदाता उसमें रुचि नहीं दिखाएंगे या फिर कम कीमत में विज्ञापन देंगे। इससे साफ समझ सकते हैं कि जिस चैनल की जितनी ज्यादा टीआरपी, उसकी उतनी ज्यादा कमाई।
टीआरपी में किस तरह से हेरफेर हुआ?
मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया देशभर में अलग-अलग जगहों पर 30 हजार बैरोमीटर (People’s Meter) लगाए गए हैं। मुंबई में इन मीटरों को लगाने का काम हंसा नाम की संस्था ने किया था। मुंबई पुलिस का दावा है कि हंसा के कुछ पुराने वर्करों ने जिन घरों में पीपल्स मीटर लगे थे, उनमें से कई घरों में जाकर वे लोगों से कहते थे कि आप 24 घंटे अपना टीवी चालू रखिए और फलां चैनल लगाकर रखिए। इसके लिए वे लोगों को पैसे भी देते थे। मुंबई पुलिस का दावा है कि अनपढ़ लोगों के घरों में भी अंग्रेजी के चैनल को चालू करवाकर रखा जाता था।
इस मामले में कुछ तथ्य विचारणीय हैं: पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि मुंबई पुलिस ने इस मामले में तीन चैनलों को आरोपी बनाया है और इनमें से दो छोटे चैनल ‘फख्त मराठी’ और ‘बॉक्स सिनेमा’ के प्रमोटर्स को गिरफ्तार कर लिया है ।
प्रश्न यह है कि तीन में से दो चैनल के मालिक गिरफ्तार कर लिए गए हैं तो तीसरे चैनल ‘रिपब्लिक’ के मालिक अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने की ताकत क्यों नहीं है ? क्या पैसे और ताकतवर लोगों के प्रति पुलिस का रवैया हरदम की तरह भिन्न है या पुलिस को पता है कि आगे पीछे उसके आरोप झूठे सिद्ध होंगे, इसलिए इस मामले को सिर्फ रिपब्लिक मीडिया की इमेज खराब करने तक ही सीमित रखा जाए!
इस मामले में टीआरपी का अनुमान लगाने वाली संस्था BARC ने अपनी एफआईआर में ‘इंडिया टुडे’ का भी नाम लिया है लेकिन पुलिस ने उसके खिलाफ कोई जांच नहीं की जो कि संदेहास्पद है ।
शुरू में ‘आज तक’ ने रिपब्लिक टीवी के फंसने पर बहुत शोर मचाया लेकिन बहुत जल्दी ही उसे पता लग गया कि इस कांड में वे भी फंस सकते हैं, इसलिए अब वह चुपचाप फिर से हाथरस के कवरेज पर लौट आए हैं।
मुंबई पुलिस और अर्नब गोस्वामी के बीच इन दिनों एक महाभारत चल रहा है और अर्नब गोस्वामी बिना डरे मुंबई पुलिस पर लगातार हमले कर रहे हैं जिससे महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस अर्नब गोस्वामी और उनके चैनल के पीछे पड़ी है। प्रश्न यह है कि अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले वामपंथी अर्नब का साथ देंगे या मुंबई पुलिस का। हां, एक बात जरूर है कि इस हमाम में सारे चैनल ही नहीं संपूर्ण व्यवस्था और राजनीतिज्ञ सब नंगे हैं।
- वेद माथुर